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रिश्ते भूल गए


हैं जो मुरव्वज मेहर-ओ-वफ़ा के सब सर-रिश्ते भूल गए 

फिर गए तुम तो क़ौल-ओ-क़सम से अपने नविश्ते भूल गए 


जब देखो तब लाठी ठेंगे खट खट करते फिरते हैं 

उड़ते हैं कोई शैख़-जी साहब उन को फ़रिश्ते भूल गए 


अहले-गहले फिरते हो साहब सैर-ए-चमन में और तुम्हें 

अपने तड़पते ज़ख़्मी सब ख़ूँ में आग़ुशते भूल गए 


क़ाज़ी-जियो के दोनों बेटे हम से कहेंगे है वो मसल 

घर में फ़रिश्ते के ख़ारिशते सो ख़ारिशते भूल गए 


नस्ल बड़ी आदम की 'इंशा' कौन किसी को पहचाने 

बाइस-ए-कसरत हम दीगर के नाते-रिश्ते भूल गए 

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